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#OpenPoetry भीग के पसीने से जब वो सुबह शाम चलता है

#OpenPoetry भीग के पसीने से जब वो सुबह शाम चलता है 
तब जाकर कोई बेटा बन ठन के सैर पर निकलता है।

जब उसके घिशे चप्पलो से उसका पैर जलता है
तब कोई संतान अपने ख्वाईशो के साथ चलता है

 जब वो अपने खुशी को गम के  साथ मलता है
तब जाकर कोई बच्चा ऐसो आराम से पलता है

न मिले उसे खुशी बुढ़ापे में जब सब कुछ बेटा ले कर चलता है,
तब उस बुड्ढे पिता का दिल अंगारो से भी तेज़ जलता है,

जब ऐसे बाप की जिंदगी वृद्धाआश्रम  में पलता है
तब इस दुनिया मे ऐसे संतानों का रहना खलता है!! भीग के पसीने से जब वो सुबह शाम चलता है 
तब जाकर कोई बेटा बन ठन के सैर पर निकलता है।

जब उसके घिशे चप्पलो से उसका पैर जलता है
तब कोई संतान अपने ख्वाईशो के साथ चलता है

 जब वो अपने खुशी को गम के  साथ मलता है
तब जाकर कोई बच्चा ऐसो आराम से पलता है
#OpenPoetry भीग के पसीने से जब वो सुबह शाम चलता है 
तब जाकर कोई बेटा बन ठन के सैर पर निकलता है।

जब उसके घिशे चप्पलो से उसका पैर जलता है
तब कोई संतान अपने ख्वाईशो के साथ चलता है

 जब वो अपने खुशी को गम के  साथ मलता है
तब जाकर कोई बच्चा ऐसो आराम से पलता है

न मिले उसे खुशी बुढ़ापे में जब सब कुछ बेटा ले कर चलता है,
तब उस बुड्ढे पिता का दिल अंगारो से भी तेज़ जलता है,

जब ऐसे बाप की जिंदगी वृद्धाआश्रम  में पलता है
तब इस दुनिया मे ऐसे संतानों का रहना खलता है!! भीग के पसीने से जब वो सुबह शाम चलता है 
तब जाकर कोई बेटा बन ठन के सैर पर निकलता है।

जब उसके घिशे चप्पलो से उसका पैर जलता है
तब कोई संतान अपने ख्वाईशो के साथ चलता है

 जब वो अपने खुशी को गम के  साथ मलता है
तब जाकर कोई बच्चा ऐसो आराम से पलता है