हर सच को नही, लिख पाते है हम.. सच होता बहुत ही, नंगा यहां.. हर कोई घूरता, कुदेरता यहां.. सच को जाने बग़ैर वो, नही छोड़ता.. किसकी अस्मत लूटी, कितनी नंगी हुई.. किस-किसने किया, मुंह काला अपना.. उसके दामन को कोई, बचाता नही.. कहानी बनाकर, सुनाते सभी.. जिसकी अस्मत लूटी, दोषी वो ही बनी.. उसके दामन पर सब, दाग़ मढ़ते गए.. #अजय57