Woh kya baat thi ..? *दर्द को अपने मूल उद्गम तक पहुंचने की प्रबल इच्छा के रूप में स्वीकार करें। -चारी जी महाराज "वास्तव में दर्द हमारे असली मकान की खिड़की पर रखे हुए लैंप के समान है ,जिसके पीछे हमें चलना है । जहाँ आनंद हमें भटकाकर, सही रास्ते से हटाकर अलग कर देता है, वहीँ दर्द का यह लैंप प्रकाशित होकर हमें वापस अपने घर की ओर ले जाता है । सही रास्ते का निर्देशन भी यह दर्द ही करता है । लेकिन ये तभी हो सकता है जब हम इस दर्द को अपने मूल उद्गम तक पहुंचने की प्रबल इच्छा के रूप में स्वीकार करें ।यदि हम अपने प्रियतम में प