मैंने देखा है बारिश में भीगते अरमानों को, अपने ही आंसूओं से भीगते हुए इंसानों को, इक प्यार का छाता ही मिल जाता तो अच्छा होता, इतनी सी बात भी जुबां पर ला ना सके, मैंने देखा है क्रोध से झुलसते हुए अरमानों को, मिल जाती अपनेपन की शीतलता तो अच्छा होता, मैं मूक निगाहों से क्या क्या कैसे देख पाया, अपने ही मन की उलझन को ना सुलझा पाया, मैं भीगते झुलसते इन दोराहों पर, अपने कंधों पर खुद को ढोते, छोड़ आया पीछे कुछ बातें, कहीं ठिठकता रूक जाता तो अच्छा होता। ©Harvinder Ahuja #दोराहे पर udass Afzal Khan Praveen Jain "पल्लव" चाँदनी