बचपन और शैतानी तुम कहती हो मुझे पता नहीं है कि मुहब्बत क्या है तो सुनो " जब जिन्दगी मेरे नजरों में तीन घण्टों की फिल्म थी, तभी से मुझे मुहब्बत की इल्म(समझ) थी क्या होती है मुहब्बत ये मैंने फिल्मों से सीखा था किसी आशिक को मैंने मुहब्बत में जान देते देखा था एक धर्म की लड़ाई में दो नादान बट रहे थे उनको धर्म की पङी थी दो जिस्म मगर एक जान कट रहे थे उनको यूँ कटते देखा आश्चर्य था दिलों में सहसा मन से पूछा क्या मुहब्बत ये संसार नहीं बदल सकती खुद भी निकल पड़ा मैं मुहब्बत के उसी सफर पर जो मेरे धर्म से जुदा हो वो इंसान ढूंढने को ज्यादा दूर ना गया मैं अपने स्कूल तक सफर की वो पढती थी मेरे साथ ही मैंने उसको पहले ऐसे ना कभी देखा जो आज मेरे लिए थी वो आज से जो मेरी जिन्दगी बनने वाली थी वो उस जिन्दगी को पाने के लिए उसके भाई को भी मैंने पीटा वो बचपन खत्म हो गई मेरी मगर वो फिल्म चल रही है उसकी शादी हो गई फिल्म का बस एक किरदार मर गया है" जौहरी मानसी