तुम्हें लगता है मेरे हो मगर मेरे नहीं हो तुम यक़ीं कितना भी दिलवाओ मगर मेरे नहीं हो तुम मेरी हर सुब्ह पर क़ब्ज़ा मेरी हर शाम पर क़ब्ज़ा मेरे हर ख़्वाब में तो हो मगर मेरे नहीं हो तुम ! sandeep ajanavii galatfahmi