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#philosophy इंसान सामनेवाली के असमन्याय(कठोरता)

#philosophy



इंसान सामनेवाली के असमन्याय(कठोरता) तब तक बर्दाश्त करता है जब उसे सामने वाले से या तो कुछ मिल रहा होता है अथवा भविष्य में कुछ मिल जाने की उम्मीद लगी हुई होती है Read more in Caption👇 पर हम इंसानों से अलग, जानवरों को अपने प्रेम से किसी तरह की कोई उम्मीद नहीं होती।
एक कुतिया या बिल्ली अपने बच्चे का कितना ख्याल रखती है जबकि पालते वक़्त भी वह जानती है कि कल बड़े होकर उसके बच्चे उसका सहारा नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी बनेंगे, फिर भी वह मादा अपने बच्चों को पाल-पोस कर बलिष्ठ व जीवन जीने को जरूरी सभी कलाओं में निपुण बनाती है।
पर संजोग से हम इंसानों में ऐसा नहीं होता। माँ-बाप भी अपने बच्चों की परवरिश बस इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने बच्चों से सहारे की उम्मीद होती है।
वास्तव में इंसानी प्यार लिप्सा में पूरी तरह लिप्त होता है। हमारी माओं का प्यार भी निर्लिप्त नहीं है, बल्कि वह भी स्वार्थ के आधार पर टिका है।
पर यही लिप्सा हमें बेहतर से बेहतर जीवन को जीने व दूसरों का पालक बनने को उकसाती भी है। यह वहीं लिप्सा है जिसने हमें जिज्ञासु बनाया और इंसानो को उस अँधेरी गुफाओं (पाषाण काल) से ललचा कर बाहर के इस चमकती दुनिया(21वीं सदी)  मे ले आई।
हिन्दू इस लिप्सा को "माहमाया देवी" के रूप में पूजते व इस सृष्टि का मौलिक तत्व मानते है, योग में इसे मूलाधार चक्र की संज्ञा दी गई है।इसका सम्मान कीजिये।

लिप्सा:-लालच, greed
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इंसान सामनेवाली के असमन्याय(कठोरता) तब तक बर्दाश्त करता है जब उसे सामने वाले से या तो कुछ मिल रहा होता है अथवा भविष्य में कुछ मिल जाने की उम्मीद लगी हुई होती है Read more in Caption👇 पर हम इंसानों से अलग, जानवरों को अपने प्रेम से किसी तरह की कोई उम्मीद नहीं होती।
एक कुतिया या बिल्ली अपने बच्चे का कितना ख्याल रखती है जबकि पालते वक़्त भी वह जानती है कि कल बड़े होकर उसके बच्चे उसका सहारा नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी बनेंगे, फिर भी वह मादा अपने बच्चों को पाल-पोस कर बलिष्ठ व जीवन जीने को जरूरी सभी कलाओं में निपुण बनाती है।
पर संजोग से हम इंसानों में ऐसा नहीं होता। माँ-बाप भी अपने बच्चों की परवरिश बस इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने बच्चों से सहारे की उम्मीद होती है।
वास्तव में इंसानी प्यार लिप्सा में पूरी तरह लिप्त होता है। हमारी माओं का प्यार भी निर्लिप्त नहीं है, बल्कि वह भी स्वार्थ के आधार पर टिका है।
पर यही लिप्सा हमें बेहतर से बेहतर जीवन को जीने व दूसरों का पालक बनने को उकसाती भी है। यह वहीं लिप्सा है जिसने हमें जिज्ञासु बनाया और इंसानो को उस अँधेरी गुफाओं (पाषाण काल) से ललचा कर बाहर के इस चमकती दुनिया(21वीं सदी)  मे ले आई।
हिन्दू इस लिप्सा को "माहमाया देवी" के रूप में पूजते व इस सृष्टि का मौलिक तत्व मानते है, योग में इसे मूलाधार चक्र की संज्ञा दी गई है।इसका सम्मान कीजिये।

लिप्सा:-लालच, greed
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