दुःख का दुःख दुःख को भी एक दुःख है न जाने क्यों लोगों को मुझसे परहेज है मेरा होना लोगों को बहुत खलता है पर इंसान मेरे ही साये में पलता है सुख की सुनहरी बाते ही भविष्य में मेरे रूप में बदलती है फिर भी दुनिया मुझसे ही जलती है लोगों को मालूम नहीं जिसे वो अभी ख़ुशी समझकर गले लगाते है बाद ये ही मेरी आग में उनको जलाते है इंसान इतनी सी बात को समझता नहीं बिना दुःख के सुख कभी मिलता नहीं मैं एक दुःख हुं और मुझे भी एक दुःख है दुनिया में मेरे बिना कहा सुख है दुःख को भी दुःख है