अगर मैं सिर्फ दुआ होता. तेरा सजदा ना बेकार होता. ना होती उदासी आज तेरे इस शहर में. बुलंदियों पर आज तेरा कारवां होता. कुछ को है आज हमसे क्यों रंज मलाल. मेरी पहचान यू ना आज पहचान को मोहताज होता. बड़े वादे कर आए थे हम तेरे पास. मेरे उन दांवों का ना बुरा हाल होता. तेरा परचम बुलंदियों पर हो मेरे दोस्त. मेरी सदाओं का किसी को तो एहतराम होता. सोचा हूं छोड़ आऊँ आज अपनी पहचान को मुल्तवी. मेरी गुमनामी का किसी को तो एहसास होता. अब दुआ बस इतना कर मेरे मौला. मेरी पहचान मेरे खूदा इस ख़िजा से मिटा देना. अवध की रचनाएं दुआ अगर मैं सिर्फ दुआ होता. तेरा सजदा ना बेकार होता. ना होती उदासी आज तेरे इस शहर में. बुलंदियों पर आज तेरा कारवां होता. कुछ को है आज हमसे क्यों रंज मलाल. मेरी पहचान यू ना आज पहचान को मोहताज होता. बड़े वादे कर आए थे हम तेरे पास. मेरे उन दांवों का ना बुरा हाल होता.