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मैं सवेरा देख कर भी दिन को रात कहता रहा संस्कार के

मैं सवेरा देख कर भी दिन को रात कहता रहा
संस्कार के नाम पर कई मनमानियाँ सहता रहा

झूठ की नुमाइश करता रहा वो शहद में घोल कर
फेर ली सबने नज़र मैं जब भी सच कहता रहा

बड़े अदब के लोग थे एक तहज़ीब का हथियार था
विरुद्ध उठे हर सवाल का अदब से क़त्ल करता रहा

इक अना में कैद थी इस घर की खुशियाँ तमाम
दिल संकीर्ण होता गया कद उसका बढ़ता रहा

बुलंदियों की फ़िक्र में जड़ों से उखड़ गया था वो
घर समझ रखा था जिसको मकान वो ढहता रहा

जिन हाथों ने थामी थीं रिश्तों की सब डोरियाँ
वो तमाशबीन बन गए घर यूँही बिखरता रहा #अभिशप्त_वरदान #तमाशबीन
मैं सवेरा देख कर भी दिन को रात कहता रहा
संस्कार के नाम पर कई मनमानियाँ सहता रहा

झूठ की नुमाइश करता रहा वो शहद में घोल कर
फेर ली सबने नज़र मैं जब भी सच कहता रहा

बड़े अदब के लोग थे एक तहज़ीब का हथियार था
विरुद्ध उठे हर सवाल का अदब से क़त्ल करता रहा

इक अना में कैद थी इस घर की खुशियाँ तमाम
दिल संकीर्ण होता गया कद उसका बढ़ता रहा

बुलंदियों की फ़िक्र में जड़ों से उखड़ गया था वो
घर समझ रखा था जिसको मकान वो ढहता रहा

जिन हाथों ने थामी थीं रिश्तों की सब डोरियाँ
वो तमाशबीन बन गए घर यूँही बिखरता रहा #अभिशप्त_वरदान #तमाशबीन
gautamanand4109

Gautam_Anand

Bronze Star
New Creator