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मुक्तक: सुप्त उर सुप्त  उर में  पल रहीं  हैं, अनक

मुक्तक: सुप्त उर

सुप्त  उर में  पल रहीं  हैं, अनकही अनुरक्तियाँ।
शूल  बनकर  चुभ  रहीं  हैं, बेवजह  आपत्तियाँ।
मन  अकेला चल  रहा है, भीड़  के  दौरान  भी।
मौन में उलझी हुई हैं, आजकल अभिव्यक्तियाँ॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
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