// कब तक // यूँ पर्दों की ओट से, निहारोगे कब तक । दिल में छुपे दर्द, संभालोगे कब तक ।। न समझा है, न समझेगा, न सोचेगा कभी कोई, दिल में है जो दबे ज़ज़्बात उसे छुपाओगे कब तक । सुबह से लेकर शाम तक मानो एक जैसा मंज़र , ख़ुद के ज़ख्मो में यूँ मरहम लगाओगे कब तक । जो है नहीं काबिल जो बन सके हमदर्द तेरा, दिल को तसल्ली दे उस पर जान लुटाओगे कब तक । इक तलाश रही अक्सर, सक़ून ए दिल मिल जाए मगर , यूँ ख्वाहिशों को रौद अपने अरमानो की होली जलाओगे कब तक । // कब तक // यूँ पर्दों की ओट से, निहारोगे कब तक । दिल में छुपे दर्द, संभालोगे कब तक ।। न समझा है, न समझेगा, न सोचेगा कभी कोई, दिल में है जो दबे ज़ज़्बात उसे छुपाओगे कब तक ।