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// कब तक // यूँ पर्दों की ओट से, निहारोगे कब त

//  कब तक   //

यूँ पर्दों की ओट से, निहारोगे कब तक । 
दिल  में  छुपे  दर्द, संभालोगे कब तक ।।

न समझा है, न समझेगा, न सोचेगा कभी कोई,
दिल में है जो दबे ज़ज़्बात उसे छुपाओगे कब तक ।

सुबह से लेकर शाम तक मानो एक जैसा मंज़र ,
ख़ुद के ज़ख्मो में यूँ मरहम लगाओगे कब तक ।

जो है नहीं काबिल जो बन सके हमदर्द तेरा,
दिल को तसल्ली दे उस पर जान लुटाओगे कब तक ।

इक तलाश रही अक्सर, सक़ून ए दिल मिल जाए मगर ,
यूँ ख्वाहिशों को रौद अपने अरमानो की होली जलाओगे कब तक ।

 //  कब तक   //

यूँ पर्दों की ओट से, निहारोगे कब तक । 
दिल  में  छुपे  दर्द, संभालोगे कब तक ।।

न समझा है, न समझेगा, न सोचेगा कभी कोई,
दिल में है जो दबे ज़ज़्बात उसे छुपाओगे कब तक ।
//  कब तक   //

यूँ पर्दों की ओट से, निहारोगे कब तक । 
दिल  में  छुपे  दर्द, संभालोगे कब तक ।।

न समझा है, न समझेगा, न सोचेगा कभी कोई,
दिल में है जो दबे ज़ज़्बात उसे छुपाओगे कब तक ।

सुबह से लेकर शाम तक मानो एक जैसा मंज़र ,
ख़ुद के ज़ख्मो में यूँ मरहम लगाओगे कब तक ।

जो है नहीं काबिल जो बन सके हमदर्द तेरा,
दिल को तसल्ली दे उस पर जान लुटाओगे कब तक ।

इक तलाश रही अक्सर, सक़ून ए दिल मिल जाए मगर ,
यूँ ख्वाहिशों को रौद अपने अरमानो की होली जलाओगे कब तक ।

 //  कब तक   //

यूँ पर्दों की ओट से, निहारोगे कब तक । 
दिल  में  छुपे  दर्द, संभालोगे कब तक ।।

न समझा है, न समझेगा, न सोचेगा कभी कोई,
दिल में है जो दबे ज़ज़्बात उसे छुपाओगे कब तक ।