धरती का दुख कौन समझेगा, धरती का दुख वो तो सब सह लेगी यही सोचकर, हमनें उसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया मगर कब तक...कब तक चलता ये सब आखिर तो सहनशक्ति की सीमा आनी थी और नतीजा हमें ही भुगतना था मगर क्या अब भी हम समझ पा रहे है धरती का बोझ, उसकी यातना, पर्वतों से लेकर, आसमान की ऊचाईयों तक जंगलों से, समुंद्र की गहराईयों तक कुछ भी तो अछुता नही र्ह जहाँ कोई प्राणी निर्भय रह सके, जीने की शर्ते भी कितनी अजीब हर ओर धक्का मुक्की जीतना ही इक मात्र लक्ष्य बन गया है ए मानव, अब तो संभल जरा अब धरती की पुकार सुन जो शायद हम से कह रही है कुछ तो धीरज धर ए मानव, नही तो नतीजा तुझे ही भुगतना है..सुमन #napowrimo में आज 22वाँ दिन है। आज Earth Day धरती दिवस मनाया जा रहा है। धरती तो मूक है इशारों में अपना दुख व्यक्त करती है। किंतु एक लेखक हर बात समझता है। #धरती #earthday #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi