, तो बड़ी मुश्किल होगी, सामने रहते हुए भी, मुझसे वो गाफिल होगी. आशिकी मेरी समझ मे, आयेगी एक दिन ज़रूर देर ग़र हो जाएगी तो , फिर ये बे-हासिल होगी. बेकरारी सीने मे, लेकर मैं कब तक, यू फिरु, उनसे इज़हार होगा जब, वो कुछ मेरे कयील होगी. महफिलों मे जिक्र होगा और चर्चे भी बोहोत, मै लिखूँगा इक ग़ज़ल, तारीफ़ उनकी शामिल होगी काश ऐसा भी हो मुझको, ये शरफ मिल जाये जो, मै बनूँ काबिल जो उसके, वो मेरे काबिल होगी. हर सवाल का जवाब देना आसान नहीं होता! और भी काफिये थे मगर ये काफी है साहिल होगी बे दिल होगी संग दिल होगी पत्थर दिल होगी मायील होगी मुकाबिल होगी