दक्षिण में कलकल करती गंगा ,उत्तर में पर्वतराज हिमालय है, ऋषि मुनियों की धरती में कंकण कंकण शंकर और शिवालय है, चरण चुम रत्नाकर भी देता भारत मां को सम्मान है, प्राकृतिक छटा बिखेरे छै ऋतुओं वाला मेरा हिंदुस्तान है, राम, कृष्ण ,बलराम स्वयं चुम गये जो माटी को, शत्रु के रक्तो से प्यास बुझी वो राणा वाली घाटी को, लक्ष्मी दुर्गा और रानी हाड़ा का ये स्वाभीमान है, बलिदानों के हवनकुंड से उगा आज का हिंदुस्तान है, बट जाए धार नदी की लेकिन नीर कहाँ बट सकती है, बट जाए माँ के बेटे लेकिन मां की छीर कहाँ बट सकती है, हम सब हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख ईसाई एक मां की संतान है, ऐसे आपस में कभी न बटने वाली भूमि मेरा हिंदुस्तान है, हम अब भी वीर वही है जिसने ढेड़लाख सेना को छेड़ा था, गौरी,तुगलग और हिसंक भेड़ियों को सतरह बार खदेड़ा था, इस मिट्टी के हर युवा दिल में गूंज रहा वंदेमातकरम गान हैं, अब घर के भीतर शत्रुओं को मारने वाला मेरा हिंदुस्तान हैं कवि दिप्तेश तिवारी #NojotoQuote मेरा हिंदुस्तान