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क्या कभी ऐसा होगा, की खुली आंखो से देखना मेअस्सर ह

क्या कभी ऐसा होगा,
की खुली आंखो से देखना मेअस्सर हो,
लेकिन वो आंखे बन्द करके
 उसके तसब्बूर को तरजीह दे,
क्या कभी ऐसा होगा,की वो सोचें..🤔
काश तुम मुझे मिले ना होते,
काश मे पूरी जिन्दगी, इसकी खूयाइश करते गुजार देता.
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचें,
काश इसकी जगह कोई और होता ,
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचे,
जो मज़ा महबूब की गलियों मे रुशवा होने मे था,
वो इसे इज़्ज़त से पा लेने मे कहां,
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचें,
काश मे यूहीं इसके दर पे पडा रहता,
और काश ये दरबाजा मेरे लिये कभी नही खुलता,
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचें,
की कहीं मैने गलती तो नही कर दी
कहीं ये जज्बा वक़्ति जुनूँ तो ना था
या शायद जो खुशी वर्षो बाद मिलने मे थी
वो रोज़ मिलने मे कहां,
क्या कभी ऐसा होगा,
की वो ख्याब जो हक़ीक़त बन गया हैं,
वो उससे वेज़ार हो जाये,
और वो जो कभी हक़ीक़त थी
वो उसका ख्याब  बन जाये,
क्या कभी ऐसा होगा,
और अगर ऐसा हुआ 
तो क्या होगा
           
                                     by hiba adnan written by hiba Adnan
क्या कभी ऐसा होगा,
की खुली आंखो से देखना मेअस्सर हो,
लेकिन वो आंखे बन्द करके
 उसके तसब्बूर को तरजीह दे,
क्या कभी ऐसा होगा,की वो सोचें..🤔
काश तुम मुझे मिले ना होते,
काश मे पूरी जिन्दगी, इसकी खूयाइश करते गुजार देता.
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचें,
काश इसकी जगह कोई और होता ,
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचे,
जो मज़ा महबूब की गलियों मे रुशवा होने मे था,
वो इसे इज़्ज़त से पा लेने मे कहां,
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचें,
काश मे यूहीं इसके दर पे पडा रहता,
और काश ये दरबाजा मेरे लिये कभी नही खुलता,
क्या कभी ऐसा होगा की वो सोचें,
की कहीं मैने गलती तो नही कर दी
कहीं ये जज्बा वक़्ति जुनूँ तो ना था
या शायद जो खुशी वर्षो बाद मिलने मे थी
वो रोज़ मिलने मे कहां,
क्या कभी ऐसा होगा,
की वो ख्याब जो हक़ीक़त बन गया हैं,
वो उससे वेज़ार हो जाये,
और वो जो कभी हक़ीक़त थी
वो उसका ख्याब  बन जाये,
क्या कभी ऐसा होगा,
और अगर ऐसा हुआ 
तो क्या होगा
           
                                     by hiba adnan written by hiba Adnan