राब्ता उम्मीदों से रख के आगे बढता रहा हूँ मैं... ना पूछ जिंदगी के हादसों से कैसे लङता रहा हूँ मैं । बाद एक जमाने के अब मुफलिसी में भी मुस्कुरा देता हूँ ना पूछ कि मुद्दतों अंदर ही अंदर कैसे तङपता रहा हूँ मैं । कर्ज बनकर कभी फर्ज बनकर जिंदगी हिस्सों में बंट गयी... ना पूछ अश्क बनकर हर मोङ पर कैसे बिखरता रहा हूँ मैं । हौसला इतना भी नहीं दो लब्ज अपने जुंबा तक ला सकूं ना पूछ वो फसाने अपनी ही जिंदगी के कैसे पढता रहा हूँ मैं । मेरे पांव के चंद जख्मों के लिए अब दवा ढूंढता है तू। ना पूछ दर्द अपना ही देख देखकर कैसे सिकुड़ता रहा हूँ में । ना पूछ जिंदगी के हादसों से कैसे लङता रहा हूँ मैं । _Aashif #NojotoQuote #हादसा......