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कोई लाख कहे के फ़क़त इक मिट्टी की देह हो तुम। पर कोई

कोई लाख कहे
के फ़क़त इक मिट्टी की देह हो तुम।
पर कोई मुझसे पूछे के मेरी नज़रों में
कौन हो तुम।
न जाने कैसा जादू है वज़ूद में तुम्हारे
हर वक़्त तर रहता है गला हमारा
शर्बत-ए-हुस्न में तुम्हारे।
कभी ओस में भीगी 
सुनहरी सी गिन्नी सा लगता है 
चेहरा तुम्हारा।
कभी चाँदनी के 
ताने बाने से बुना
कोई ख़याल सी लगती हो तुम।
मोगरे को महकती डाल से फ़िसल
खिड़की के सहारे जो मेरे कमरे में पसर जाता है
वो महकता चाँद हो तुम।
तुम्हारे ख़याल को बोने पे
जो सुर्ख़ बदन खिले,
वो गुलाब हो तुम।
जिसको बनाने के ख़ातिर 
खुद रब ने भी मोहब्बत फ़रमाई होगी,
वो मुजस्समा-ए-इश्क़
लगती हो तुम।

अलका निगम
लफ्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #तुम_ही_तुम
कोई लाख कहे
के फ़क़त इक मिट्टी की देह हो तुम।
पर कोई मुझसे पूछे के मेरी नज़रों में
कौन हो तुम।
न जाने कैसा जादू है वज़ूद में तुम्हारे
हर वक़्त तर रहता है गला हमारा
शर्बत-ए-हुस्न में तुम्हारे।
कभी ओस में भीगी 
सुनहरी सी गिन्नी सा लगता है 
चेहरा तुम्हारा।
कभी चाँदनी के 
ताने बाने से बुना
कोई ख़याल सी लगती हो तुम।
मोगरे को महकती डाल से फ़िसल
खिड़की के सहारे जो मेरे कमरे में पसर जाता है
वो महकता चाँद हो तुम।
तुम्हारे ख़याल को बोने पे
जो सुर्ख़ बदन खिले,
वो गुलाब हो तुम।
जिसको बनाने के ख़ातिर 
खुद रब ने भी मोहब्बत फ़रमाई होगी,
वो मुजस्समा-ए-इश्क़
लगती हो तुम।

अलका निगम
लफ्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #तुम_ही_तुम
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