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आत्मग्लानि का कोई रंग नहीं होता बेचैनी की कोई भाषा

आत्मग्लानि का कोई रंग नहीं होता
बेचैनी की कोई भाषा नहीं होती
दुख किसी कैलेंडर में दर्ज नहीं होते
और सुख को सहेजना धूप में स्वेटर सुखाना है 
मर्यादा की कोई सीमा नहीं होती 
और सीमा में रहकर कुछ नहीं होता 
देखना सुख है, छूना हक़, पा लेना जुनून और
भूल जाना आघात करना है.... 
समंदर के साथ आँखे बनाई गईं , घड़े से ज़्यादा पानी आँख में होता है। 
औरत को पत्थर बनाया गया, जबकि वह मोम की थी 
हमारी पहचान कम हुई जाना पहले गया और जान लेने के लिए 
'जान' लेना आवश्यक था....

                             ~

©पूर्वार्थ #आत्मग्लानि
आत्मग्लानि का कोई रंग नहीं होता
बेचैनी की कोई भाषा नहीं होती
दुख किसी कैलेंडर में दर्ज नहीं होते
और सुख को सहेजना धूप में स्वेटर सुखाना है 
मर्यादा की कोई सीमा नहीं होती 
और सीमा में रहकर कुछ नहीं होता 
देखना सुख है, छूना हक़, पा लेना जुनून और
भूल जाना आघात करना है.... 
समंदर के साथ आँखे बनाई गईं , घड़े से ज़्यादा पानी आँख में होता है। 
औरत को पत्थर बनाया गया, जबकि वह मोम की थी 
हमारी पहचान कम हुई जाना पहले गया और जान लेने के लिए 
'जान' लेना आवश्यक था....

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©पूर्वार्थ #आत्मग्लानि