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"",हार नहीं मानूँगा ।।" प्रचंड झंझावात की ,उफनती

"",हार नहीं मानूँगा ।।"

प्रचंड झंझावात की ,उफनती लहरों से ।
विद्युत के तीक्ष्ण कड़कते उन्माद से ।।
जीवन नौका का,दिशाज्ञान ना भूलाउँगा।
अपने जीवन को बस, लक्ष्य पर ले जाउँगा ।
हार नही मानूँगा ,हार नही मानूँगा ।।

धधकते रगिस्तान की रेतों पर चलकर ।
उबलती धूल  के तपन में पल कर ।।
जीवन प्रतीज्ञा को जमीं पर उतारूँगा।
शोणित से अपने ,सपनों को उगा जाउंँगा ।।
हार नही मानूँगा ,हार नही मानूँगा ।।

कहाँ अग्निपथ है ,कहाँ दावानल है ?
बताओ मुझे कौन सा, वो विकट पल है ?
उसी विषपायी ,शिव के ही आशीष से ।
मैं जीवन विष को,गले में ही उतारूँगा।
हार नही मानूँगा ,हार नहीं मानूँगा ।।

उल्कापातों से भी  है,समझौता मेरा।
तूफानों से भी , है हर नाता मेरा।
जीवन डोर मैं ,शोलों में गूँथ कर ।
अपनी शोणित से बगिया के ,फूलों को सींच जाउँगा।।

हार नहीं मानूँगा,हार नहीं मानूँगा ।।

आ मृत्यु तेरी ,अब प्रतीक्षा मैं करता हूँ ।
जीवन तुझसे छिनूँगा,मैं ये कहता हूँ ।
बता वो प्रायश्चित का ,अग्निकुंड कहाँ है ??
उससे ही गुजर कर ,मैं तिलक लगाउंँगा।
हार नही मानूँगा ,हार नही मानूँगा ।।

©पूर्वार्थ
  #हार_नही_मानूंगा