डियर तुम | हां तुम ! तुम सब...😊 मित्रों ! आज रात 12 बजे के बाद एक नया दिन शुरू हो गया और मैं जो थोड़ा पहले लिखना चाहता था उसमें थोड़ा और विलंब हो गया...समय के संदर्भ में तो हर कोई निर्धन ही है और ऑफिस की व्यस्तताओं के चलते समय निकलना थोड़ा मुश्किल होता जा रहा है आजकल हम फाइनेंस के छेत्र से संबंधित लोगों को...दरअसल मुझे आशा ही ना थी कि मुझे कुछ इस तरह का धन्यवाद संदेश लिखने की ज़रूरत भी पड़ेगी क्योंकि मुझे आशा ही ना थी कि इतना स्नेह और प्रेम मिलेगा आप सभी लोगों से मुझ लल्लू दसहरी को... आदरणीय साहित्यकार पद्मा भूषण विष्णु प्रभाकर जी