इंसानियत कुछ यूं शर्मसार हुई, कि,आज फ़िर एक बेटी ‘बलात्कार’ हुई, यूं तो मंदिरों में देवी बना पूजा है इन्हे, वहीं, घर की मर्यादा और संस्कारो को बेडी पिन्हा दबोचा है इन्हे। डराते, नोच-खाते, शरीर का भोग लगाते गिद्धों, कुत्तों और भेड़ियों कि जीत, तो इंसानियत की हार हुई, कि, आज फिर एक बेटी बलात्कार हुई। ‘निर्भया’,‘आसिफा’ और अब ‘प्रियंका’ तो और भी ना जाने कितनी ही इन दरिंदो का शिकार हुई, लो आज फ़िर एक बेटी बलात्कार हुई। अब फिर से डीपी और स्टेटस बदलेंगे, कैंडल मार्च होगी, और शोक में शामिल दिखावे की सरकार भी होगी। मुज़रीम पकड़े भी जाएंगे, तारिखो का सिलसिला चलेगा, और फांसी से कम हुई सज़ा तो पीड़िता कि आत्मा को ना-गवार भी होगी। क्या करे अब बेटियां, यूंही शिकार होती रही हेवानियत का, या पैदा होना ही छोड़ दे बेटियां? गर, ऐसा हुआ भी तो खु़द के अस्तित्व को कैसे कायम रख पाओगे, जन्मे तुम औरत से ही हो, बीन औरत धरती पे कैसे जन्म पाओगे? पीड़िता (औरत) के दर्द, वेदना, उसकी छटपटाहट को समझो, रोको, कि, अब ना कोई बलात्कार हो भेंट ना चढ़े कोई बेटी इन दरिंदो के आगे, और इंसानियत ना फ़िर से शर्मासर हो। और इंसानियत ना फ़िर से शर्मासर हो। ~हेमंत राय। इंसानियत कुछ यूं शर्मसार हुई, कि,आज फ़िर एक बेटी ‘बलात्कार’ हुई, यूं तो मंदिरों में देवी बना पूजा है इन्हे, वहीं, घर की मर्यादा और संस्कारो को बेडी पिन्हा दबोचा है इन्हे। डराते, नोच-खाते, शरीर का भोग लगाते गिद्धों, कुत्तों और भेड़ियों कि जीत, तो इंसानियत की हार हुई, कि, आज फिर एक बेटी बलात्कार हुई।