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देखती हूँ जिंदगी के उस छोर में वो आवारगी के दौर म

देखती हूँ जिंदगी के उस छोर में
वो आवारगी के  दौर में,
रहते थे मजे के शोर में,
वो हसीन जिंदगी के खूबसूरत लड़कपन के किस्से,
अब चढ़ती उम्र में नही हैं इस जवानी के हिस्से,
सुबह सुबह उठ कर दोस्तों संग मस्ती,
अलग ही जमती थी अपनी गपशप की बस्ती,
क्या क्या खेल हमने थे खेलें ,न कोई खास थे जिंदगी के झमेले ,
वो चवन्नी वो अठ्ठनी एक रुपये में भरते थे चीजो से पन्नी,
वो लाल ,काली चूर्ण, वो पान पराग की टॉफी,
चाय का ही नाम सुना था समझ से बाहर थी कॉफी,
वो बर्फ की जूसी, रंग बिरंगी कुल्फ़ी चूसी,
 बर्फ के गोले से लाल होंठ करते थे,बचपन की लिपस्टिक के मजे लेते थे,
गर्मी की छुट्टियों में ने नानी के घर जाना और पढ़ाई को करते थे दरकिनार,
दिन भर घूमते,, होते थे मस्ती की कस्ती में सवार,
Part-1
 देखती हूँ जिंदगी के उस छोर में
वो आवारगी के  दौर में,
रहते थे मजे के शोर में,
वो हसीन जिंदगी के खूबसूरत लड़कपन के किस्से,
अब चढ़ती उम्र में नही हैं इस जवानी के हिस्से,
सुबह सुबह उठ कर दोस्तों संग मस्ती,
अलग ही जमती थी अपनी गपशप की बस्ती,
क्या क्या खेल हमने थे खेलें ,न कोई खास थे जिंदगी के झमेले ,
देखती हूँ जिंदगी के उस छोर में
वो आवारगी के  दौर में,
रहते थे मजे के शोर में,
वो हसीन जिंदगी के खूबसूरत लड़कपन के किस्से,
अब चढ़ती उम्र में नही हैं इस जवानी के हिस्से,
सुबह सुबह उठ कर दोस्तों संग मस्ती,
अलग ही जमती थी अपनी गपशप की बस्ती,
क्या क्या खेल हमने थे खेलें ,न कोई खास थे जिंदगी के झमेले ,
वो चवन्नी वो अठ्ठनी एक रुपये में भरते थे चीजो से पन्नी,
वो लाल ,काली चूर्ण, वो पान पराग की टॉफी,
चाय का ही नाम सुना था समझ से बाहर थी कॉफी,
वो बर्फ की जूसी, रंग बिरंगी कुल्फ़ी चूसी,
 बर्फ के गोले से लाल होंठ करते थे,बचपन की लिपस्टिक के मजे लेते थे,
गर्मी की छुट्टियों में ने नानी के घर जाना और पढ़ाई को करते थे दरकिनार,
दिन भर घूमते,, होते थे मस्ती की कस्ती में सवार,
Part-1
 देखती हूँ जिंदगी के उस छोर में
वो आवारगी के  दौर में,
रहते थे मजे के शोर में,
वो हसीन जिंदगी के खूबसूरत लड़कपन के किस्से,
अब चढ़ती उम्र में नही हैं इस जवानी के हिस्से,
सुबह सुबह उठ कर दोस्तों संग मस्ती,
अलग ही जमती थी अपनी गपशप की बस्ती,
क्या क्या खेल हमने थे खेलें ,न कोई खास थे जिंदगी के झमेले ,