चाहत रही कि उनको समंदर ले जाएंगे फन-फनाती लहरों में पैरों को नहलायेंगे बरस जाएंगे बादल तो नज़ारे हसीन होंगे उछलती मछलियों के पर भी रंगीन होंगे खुलेगा मौसम और गुनगुनी धूप होगी दोनों चेहरों पर मुस्कुराहट खूब होगी ये पागल का पागलपन बोल रहा था ख़्वाबों को हक़ीक़त में तोल रहा था हो जाता मुकम्मल उसका तो वो भी तन जाता उसको पागल कहने बाला खुद पागल बन जाता! ©sagar manthan #mohabbat #ख्वाब पागल का..✍️