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हिंदी से हिन्द तक.... हिंद के इस सरजमीं पर, अंग्र

हिंदी से हिन्द तक....

हिंद के इस सरजमीं पर,
अंग्रेजों का ताना-बाना है।
राजभाषा को तुच्छ समझते,
ये कैसा मनमाना है।।

हिंदी से ही सभ्यता, संस्कृति, संस्कार,
हिंदी से ही हम सब की परिपाटी है।
पुरा समय से भारत मां की वंदन करती,
हिंदी से ही हिंद की अनुपम माटी है।।

हिंदी और हिंद का सम्मान करो,
ये हिंदुस्तान की गौरवगाथा है।
हिन्द को विश्वगुरु बनाने वाली,
ये हम सबकी मातृभाषा है।।

आज हिंदी को तुच्छ समझ लिया,
डलहौजी के औलादों गैरों ने।
वरना विश्व की सर्वोच्च भाषा होती,
उर्दू, फारसी, अंग्रेजी औरों में।।

रचयिता~© मंगल प्रताप चौहान हिंदी से हिन्द तक... मंगल प्रताप चौहान
हिंदी से हिन्द तक....

हिंद के इस सरजमीं पर,
अंग्रेजों का ताना-बाना है।
राजभाषा को तुच्छ समझते,
ये कैसा मनमाना है।।

हिंदी से ही सभ्यता, संस्कृति, संस्कार,
हिंदी से ही हम सब की परिपाटी है।
पुरा समय से भारत मां की वंदन करती,
हिंदी से ही हिंद की अनुपम माटी है।।

हिंदी और हिंद का सम्मान करो,
ये हिंदुस्तान की गौरवगाथा है।
हिन्द को विश्वगुरु बनाने वाली,
ये हम सबकी मातृभाषा है।।

आज हिंदी को तुच्छ समझ लिया,
डलहौजी के औलादों गैरों ने।
वरना विश्व की सर्वोच्च भाषा होती,
उर्दू, फारसी, अंग्रेजी औरों में।।

रचयिता~© मंगल प्रताप चौहान हिंदी से हिन्द तक... मंगल प्रताप चौहान