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अपनी खुशबू से ही हवाओ को वो महका देती हैं और पतझड़

अपनी खुशबू से ही हवाओ को वो महका देती हैं और पतझड़ के मौसम में सावन  बरसा देती है,
यूं तो सब लिबाज़ो में उसे सुन्दर कोई नही है 
पर जब बदन पर हो काली साड़ी यौवन को आग लगा देती है।
यू तो वो है सयानी लड़की हर गम को सहकर ख़ुद को ही ढाल बना देती हैं,
एक तो उसके दिल में बैठी एक प्यारी मासूम बच्ची है 
जो छोटी बातों पर आंखों से अश्रु बहा देती हैं।
 मोटी गहरी आंखें उसकी साधारण सी एक अलग सी करामात कर देती हैं,
यूं तो पार किए तैर कर कई समंदर न जाने कैसे उसकी आंखे खुद में हमको डूबा देती हैं।
वाणी भी उसकी मानो आनंद शरद पूर्णिमा के चांद का देती हैं,
कानों से उतर कर हृदय पथगामिनी होकर रूह में प्रेम रास के दर्शन करवा देती हैं।
खोल कर जुल्फो को अपनी करवा कर हवाओ संग बालों को क्रीड़ा बिखरे  हुए मन मेरे को आत्मीक शांति में समेट देती हैं,
दो नागिन सी मुख पर जुल्फे लटकाकर अपने बंधे केशो से सम्मोहन की अनंत विद्याएं हम पर उड़ा देती है।
हंसकर वो बसंत ऋतुओं सम उजड़े उपवन से हृदय को जीने का तरीका बता देती हैं,
"मुसाफिर"माथे पर बिंदी और आंखों में कोटि खंजरों सम काजल से अनन्त अप्सराओं को भी इसी साधारण से श्रृंगार से घायल कर देती हैं।

©Musafir ke ehsaas
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