सब कुछ नाकाम सी कोशिशों का मंज़र नजर आता हैं मेरे आँख के आंसू, मेरे कलम कि स्याही सा नजर आता है जब नहीं फर्क पड़ा हैं तुम्हें हर्फ़ दर हर्फ आंसुओ से मेरे तो मेरी रोती कलम से भी कहाँ असर नजर आता हैं पर लगता हैं, वो मेरी कोशिशों से परेशान नजर आता है उसकी जुबां से तो नहीं मगर हरकतों से तो नजर आता हैं बस बता दो अगर नफरत हैं मेरी हर कोशिश से तुम्हें, सज़ा हर मंजूर हैं तेरी इन्साफ ऐ अदालत में ग़र ये फरियादी फिर कभी तेरे दरबार में नजर आता हैं -चौहान 😊😊