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अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही आस उ

अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही

आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही

मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही

जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही

चंद शब्दों और अल्फाजों में मैं सारा जीवन बांच रही

सांसों के नैन कटोरे में, मै तिनका तिनका डाल रही

जीवट है जिजीविषा जहां, मै वहीं से रास्ता लांघ रही

काजल टीका नैनो से ले, मैं नजर दोष को बांध रही

न नदी समंदर ताल जहां, है मुझको जल की आस वहीं

बिन पिए ही जो बुझ जाए ,इतनी हल्की मेरी प्यास नहीं 

हैं अंतर्द्वंद तो रहने दो,मेरे मन के भीतर आस बड़ी

जीवट है मन जीवट है तन ,मैं हार जीत के पार खड़ी

अंतर्द्वंद ही अंतर्द्वंद मैं उनके भीतर आन खड़ी

मैं अंतर द्वंद्व आे की गठरी में अपने मन को बांध रही ।।

        _____सुषमा नैय्यर अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही

आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही

मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही

जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही
अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही

आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही

मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही

जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही

चंद शब्दों और अल्फाजों में मैं सारा जीवन बांच रही

सांसों के नैन कटोरे में, मै तिनका तिनका डाल रही

जीवट है जिजीविषा जहां, मै वहीं से रास्ता लांघ रही

काजल टीका नैनो से ले, मैं नजर दोष को बांध रही

न नदी समंदर ताल जहां, है मुझको जल की आस वहीं

बिन पिए ही जो बुझ जाए ,इतनी हल्की मेरी प्यास नहीं 

हैं अंतर्द्वंद तो रहने दो,मेरे मन के भीतर आस बड़ी

जीवट है मन जीवट है तन ,मैं हार जीत के पार खड़ी

अंतर्द्वंद ही अंतर्द्वंद मैं उनके भीतर आन खड़ी

मैं अंतर द्वंद्व आे की गठरी में अपने मन को बांध रही ।।

        _____सुषमा नैय्यर अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही

आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही

मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही

जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही