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प्रिय स्वयं, अपना खुद का ख्याल रखना , और उससे भी

प्रिय स्वयं,

अपना खुद का ख्याल रखना , और उससे भी ज्यादा ख़्याल रखना अपने कोमल अनुभवों का  अपनी पवित्र भावनाओ का , ख़्याल रखना कि कोई तुम्हे भीतर से आहत और विक्षिप्त ना कर पाए  क्योंकि आपके ये कोमल एहसास किसी खूबसूरत इमारत की तरह नहीं जिसे बार बार तोड़कर भी एक खूसूरत दीदार दिया जा सके ये तो शीशे के उस खूबसूरत खिलौनों कि तरह होते हैं जिससे दुसरे सिर्फ खेलना जानते हैं जिसे टूटने पर वापस जोड़ा तो जा सकता है लेकिन वो निशान ताउम्र आपको ये एहसास दिलाते है कि आपकी अनुभूतियों को अपने वास्तविक स्वरूप में स्वीकार किया जायेगा ऐसा अपेक्षित होना व्यर्थ है।

अपना ख्याल रखना, क्योंकि  इस संसार में यदि कोई है जो आपके प्रेम दया करुणा और क्षमा के योग्य है तो केवल आप है, यदि कोई है जो आपसे नहीं केवल आपके प्रेम से प्रेम करता है आपकी शुद्ध भावनाओ और सौम्य एहसासों की सबसे ज्यादा जिसे अनुभूति हो सकें , वो केवल आप है, अपेक्षित होकर इसे अपने बाहर खोजना आपको अंदर से आहत और विक्षिप्त ही करेगा।

अपना ख़्याल रखना, क्योंकि जीवन एक किताब की तरह है जिसमें आपके अनुभव पन्ने की तरह होते है जो कि विपरित परिस्थति रूपी हवाएं आने पर बार बार आपके समक्ष आएंगे जब भी आपको भावनात्मक रूप से मजबूत होना होगा आपके ये कड़वे अनुभव आपको विचलित करेंगे, इसलिए ख्याल रखना अपने अनुभवों का कि वो कभी भी आहत ना होने पाए , अपनी पवित्र और सौम्य भावनाओं का कि वो कभी भी दूसित न होने पाए, समस्त संसार के प्रति आपके दिल में व्याप्त प्रेम और अपनत्व हमेशा जीवंत रहे।। एक पत्र खुद के नाम।
प्रिय स्वयं,

अपना खुद का ख्याल रखना , और उससे भी ज्यादा ख़्याल रखना अपने कोमल अनुभवों का  अपनी पवित्र भावनाओ का , ख़्याल रखना कि कोई तुम्हे भीतर से आहत और विक्षिप्त ना कर पाए  क्योंकि आपके ये कोमल एहसास किसी खूबसूरत इमारत की तरह नहीं जिसे बार बार तोड़कर भी एक खूसूरत दीदार दिया जा सके ये तो शीशे के उस खूबसूरत खिलौनों कि तरह होते हैं जिससे दुसरे सिर्फ खेलना जानते हैं जिसे टूटने पर वापस जोड़ा तो जा सकता है लेकिन वो निशान ताउम्र आपको ये एहसास दिलाते है कि आपकी अनुभूतियों को अपने वास्तविक स्वरूप में स्वीकार किया जायेगा ऐसा अपेक्षित होना व्यर्थ है।

अपना ख्याल रखना, क्योंकि  इस संसार में यदि कोई है जो आपके प्रेम दया करुणा और क्षमा के योग्य है तो केवल आप है, यदि कोई है जो आपसे नहीं केवल आपके प्रेम से प्रेम करता है आपकी शुद्ध भावनाओ और सौम्य एहसासों की सबसे ज्यादा जिसे अनुभूति हो सकें , वो केवल आप है, अपेक्षित होकर इसे अपने बाहर खोजना आपको अंदर से आहत और विक्षिप्त ही करेगा।

अपना ख़्याल रखना, क्योंकि जीवन एक किताब की तरह है जिसमें आपके अनुभव पन्ने की तरह होते है जो कि विपरित परिस्थति रूपी हवाएं आने पर बार बार आपके समक्ष आएंगे जब भी आपको भावनात्मक रूप से मजबूत होना होगा आपके ये कड़वे अनुभव आपको विचलित करेंगे, इसलिए ख्याल रखना अपने अनुभवों का कि वो कभी भी आहत ना होने पाए , अपनी पवित्र और सौम्य भावनाओं का कि वो कभी भी दूसित न होने पाए, समस्त संसार के प्रति आपके दिल में व्याप्त प्रेम और अपनत्व हमेशा जीवंत रहे।। एक पत्र खुद के नाम।