चिंगारी ------------------------------------------------------- ये उजलि ये काली, धुआ संग लाली, लपटो से बिखरती हूई ये चिंगारी, बस्ती को जला के मचल क़्यो रही है ! कभी इस गली तो कभी उस मोहल्ले , हवा मैं तैरती हुई चल रही है, घरो से निकलकर , तो छत से फिसलकर,, चौराहे पे जा के .... सभंल क़्यो रही है! ये उजली ये काली..............................रही है! लपलपाती जिभ से कच्चे घरो को , छोटे - बडो को , दरवाजे से निकलकर तो, खिड्र्की से फिसलकर, खूद मे लपेटे निगल क़्यो रही है! जख्मि झुलसे बदन ये, चिथड्रो से कफन ये, रातो को घरो से, निकल कंधो पर बोझ , चल क़्यो रही है! करुणा का नजारा , था किसका दोस सारा, अजनबी मैं बेचारा , पूछ्ता किससे कि ये... बस्ती जल क़्यो रही है! ये उजली ये काली........................................रही है! by - Nilmani Thakur #चिंगारी