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मैं वही रंग हूँ जो तेरे आँगन में बनी रंगोली के रंग

मैं वही रंग हूँ जो तेरे आँगन में बनी रंगोली के रंगों में मिल जाता है। मैं
वही मेहताब हूँ जो तेरी छत पर तुझे ताकने आता है। सुबह की हर पहर मेरे
रंग तेरे पैसे से रौंदे जाते है या कभी पानी से बहा दिए जाते है। मैं फिर भी
उस पानी में घुल जाता हूँ। हर अमावस पर तेरा छत पर आना मुझे चिढ़ाने
जैसा है। मेरा तुझे ताकें जाना और तेरा मुझे तरसाना जैसे कभी ना खत्म
होने वाला काम है। मैं वही हूँ जो सदा तेरे आस पास रहता है। मेरे जिस्म का
तेरे करीब होना अब मायने नहीं रखता। बस कभी मेरा नाम तेरे नाम के
साथ जुड़ा था बस वही मेरी मौजूदगी का सच है। कभी ना कभी, कही जा
कहीं, किसी ना किसी रूप में हम टकराएंगे ज़रूर। बस तुम मौन रहना,
मुझे अच्छे से रोने देना। कुछ पल के लिए ही सही अगर हो सके तो मुझे
गले लगा लेना। मेरी मुक्ति केवल तभी संभव होगी।

©Prince_" अल्फाज़"
  #ek_khayal  S_K_Official23 (kashaf/کشف ) R K Mishra " सूर्य " Niaa_choubey Poetrywithakanksha Anshu writer Adv.Anikesh Vijayvergiya Sarita Rathore