बेटियां जल रही है दहेज के नाम पर , कौन कहता है परिवर्तन आ रहा है , रूहे चीत्कार कर रही बहुओं की , कौन कहता है परिवर्तन आ रहा है | घर जल गए , शहर शमशान हो गए , धूमल पड़ गयी छाप सच्चे रिश्तों की , फिर कौन कहता है परिवर्तन आ रहा है | सदियां गुजर गयी , एक पिता जो बेटी को कन्यादान में देता था उपहार , आज खुद को मिटा कर दहेज़ देता है , अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए अपना आशियाना भी बेंच देता है , फिर कौन कहता है परिवर्तन आ रहा है , जो कहते है दहेज़ एक कुरीति है , जो कहते है दहेज़ एक कुरीति है , पर सबसे छिपा कर खुद भी , ये काला व्यापार करता है , यूँ सड़कों पर होते हज़ारों तमाशे है , फिर कंधे पर दहेज में जाली लाश लिए ये कौन खड़ा है , बेटियां जल रही है दहेज़ के नाम पर , कौन कहता है परिवर्तन आ रहा है | वो कहते है हमे बेटी के सिवा कुछ नहीं चाहिए , फिर पीठ पीछे चुपके से ये मांग कौन करता है , जो आपकी मर्जी हो कहकर ,जो अपनी मांगे पूरी करता है, जितना ऊँचा पद होगा , दहेज़ भी उतना ही महंगा होगा , वो निर्लज्ज. लोभी , सोच में उतना ही निचा होगा , आज कल तो सरकारी नौकर ,खुद का सीना थोक,शान से भीख मांगते है , कहते है मै सरकारी अफसर , फिर दौलत के नशे में चूर , कौड़ी में बिक जाते है , एक बाप कर्ज़ों में डूब गया और वो कहते है की तेरे बाप ने दिया क्या है , जाने कितनी जल गयी और जाने कितनी जल जाएँगी , इस दहेज़ की होली में ये सारी दुनिया जल जाएगी , किसी की माँ ,किसी की बेटी , किसी की बहिन जल जाएगी, ह्रदय दुखता आत्मा भी रोती है सोना की , फिर कौन कहता है परिवर्तन आ रहा है | #दहेज़, #कौन कहता है परिवर्तन आ रहा है