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कि होना ये बरसो बरस मे नहीँ है मैं ये जानता हूं

  कि होना ये बरसो बरस मे नहीँ है मैं ये जानता हूं वो नज़दीक़ में हैं
कि अब मेरा दिल मेरे बस में नहीं है...... 

मुहब्बत करें हम तो फिर मिल ही जायें, 
कि ऐसी ज़माने की रस्में नहीं हैं... 
न वो अलहदा हैं औ ना मैं जुदा हूं, 
कि बस जीने मरने की किस्में नहीं हैं.....
  कि होना ये बरसो बरस मे नहीँ है मैं ये जानता हूं वो नज़दीक़ में हैं
कि अब मेरा दिल मेरे बस में नहीं है...... 

मुहब्बत करें हम तो फिर मिल ही जायें, 
कि ऐसी ज़माने की रस्में नहीं हैं... 
न वो अलहदा हैं औ ना मैं जुदा हूं, 
कि बस जीने मरने की किस्में नहीं हैं.....