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अलग में आग में मिल कर सबब के साथ में खिल कर वही मे

अलग में आग में मिल कर सबब के साथ में खिल कर
वही में राग हूं काफी रहूंगा राख में दिलबर
समा को खौफ था शायद में पागल में अजायब हूं
खुले आकाश ने तोड़ा तराना ताल से दिनकर
शराबों की थी बीमारी शराबी ही को होती थी
मिलावट थी जो पानी की मिली बेहाल में पीकर 
गरीबों की गरीबी से मिटी मंदिर की रेखाएं
अमीरों की अमीरी ने मिटाया खुद नबी का घर
वो गोरे थे या काले क्या करोगे जानकर गालिब
अमूमन लाल है अंदर सभी बाहिर से है बंदर 
किताबी इल्म को पढ़ना कभी बंधन से बाहिर था
अभी बंधन है वो इल्मे सितम को जानना बहेतर  आप का समाज और बदलते तौर के प्रति क्या प्रतिसाद है?
#somethingdifferent #jugalbandi #hindi #poetry
अलग में आग में मिल कर सबब के साथ में खिल कर
वही में राग हूं काफी रहूंगा राख में दिलबर
समा को खौफ था शायद में पागल में अजायब हूं
खुले आकाश ने तोड़ा तराना ताल से दिनकर
शराबों की थी बीमारी शराबी ही को होती थी
मिलावट थी जो पानी की मिली बेहाल में पीकर 
गरीबों की गरीबी से मिटी मंदिर की रेखाएं
अमीरों की अमीरी ने मिटाया खुद नबी का घर
वो गोरे थे या काले क्या करोगे जानकर गालिब
अमूमन लाल है अंदर सभी बाहिर से है बंदर 
किताबी इल्म को पढ़ना कभी बंधन से बाहिर था
अभी बंधन है वो इल्मे सितम को जानना बहेतर  आप का समाज और बदलते तौर के प्रति क्या प्रतिसाद है?
#somethingdifferent #jugalbandi #hindi #poetry
dharmdesai1546

Dharm Desai

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