अलग में आग में मिल कर सबब के साथ में खिल कर वही में राग हूं काफी रहूंगा राख में दिलबर समा को खौफ था शायद में पागल में अजायब हूं खुले आकाश ने तोड़ा तराना ताल से दिनकर शराबों की थी बीमारी शराबी ही को होती थी मिलावट थी जो पानी की मिली बेहाल में पीकर गरीबों की गरीबी से मिटी मंदिर की रेखाएं अमीरों की अमीरी ने मिटाया खुद नबी का घर वो गोरे थे या काले क्या करोगे जानकर गालिब अमूमन लाल है अंदर सभी बाहिर से है बंदर किताबी इल्म को पढ़ना कभी बंधन से बाहिर था अभी बंधन है वो इल्मे सितम को जानना बहेतर आप का समाज और बदलते तौर के प्रति क्या प्रतिसाद है? #somethingdifferent #jugalbandi #hindi #poetry