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वो गम नहीं छिपा पाती है, ख़ुद को काबिल बताती है। आं

वो गम नहीं छिपा पाती है,
ख़ुद को काबिल बताती है।
आंसू छिपा क़र नकली हसीं दिखाती है, खुदा जाने इतना जर्फ़ कहाँ से लाती है।

©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) अल्फाज़.64
वो गम नहीं छिपा पाती है,
ख़ुद को काबिल बताती है।
आंसू छिपा क़र नकली हसीं दिखाती है, खुदा जाने इतना जर्फ़ कहाँ से लाती है।

©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) अल्फाज़.64