ढूँढ रहे हो बात पे अपनी टिकने वाले लोग, मिल जाते हैं पैसों पर भी बिकने वाले लोग, शक्ल-ओ-सूरत से धोखा खा जाती हैं आँखें, क़ातिल बन जाते भोले से दिखने वाले लोग, कभी चला करता था सिक्का जिनकी बातों का, दूर-दूर तक नज़र न आते चिकने वाले लोग, नाम अमर कर जाते मर कर भी इस दुनिया में, मिहनत से क़िस्मत का खेल पलटने वाले लोग, बहुतायत में मिल जाती ऐसी प्रजाति जग में, अपने हिस्से सबका श्रेय लपकने वाले लोग, राह कंटीली बचकर चलना मंज़िल के राही, पीछे पड़ जायेंगे गले लिपटने वाले लोग, होता कठिन काट पाना ये मोह फाँस 'गुंजन', माया के दलदल में फंसे टपकने वाले लोग, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #बिकने वाले लोग#