जिस्म-ओ-जां रूह-ए-एहसास नहीं। इश्क़-ए-वफ़ा की किसी से आश नहीं। तमाम खुशियों को बर्बाद होते देखा। अब मुस्कुराऊं कोई वजह पास नहीं तुम मेरी क्या थी,ये तुम्हें मैं क्या बताता। तुमसे ज्यादा कोई और मेरा ख़ास नहीं। आप ख़ुश हो न जहां हो, सुनो मै भी, ग़मज़दा हूं मगर तुम बिन उदाश नहीं। अब दिल की बाज़ी और नहीं लगाऊंगा। मुकम्मल-ए-इश्क़ किसी की तलाश कहां। देख तेरे सज़दे में आ गया हूं मेरे ख़ुदा। किसी और से इश्क़ की अब प्यास नहीं। मृत्युंजय विश्वकर्मा gazal #Gazal❤️ #BestSher