Nojoto: Largest Storytelling Platform

वो अगर चाहता तो जाति को बनाता ढाल तब देश था जकड़ा

वो अगर चाहता तो जाति को बनाता ढाल तब
 देश था जकड़ा हुआ अंधकार का था जाल जब
था मगर उसने चुना सत्य के प्रकाश को
न मंदिर-मस्जिद को न झूठ के आकाश को

 वो  दिखाता ही गया जो रास्ता वीरान था
कोई न था केवल वहाँ ईश्वर का ही वितान था
उसने मिटाया हिंद से पाखंड के हर ख़्वाब को 
काँटों को था कुचला खिलाकर ज्ञान के गुलाब को

आज भी है ढूँढता भारत उसी विद्वान को
 इंसानियत के देवता एक पुरुष महान को
जिसने सिखाई देश को औरत की मान वंदना
नारी के स्वाभिमान के लिए की सिंह गर्जना

उस दयानंद की ज़रूरत आज फिर वतन को है
वो आए तो समझाए कि देश बढ़ रहा पतन को है
 बस जात-पात धर्म-क्षेत्र मूर्तियों के नाम में
कोई कहाँ अब ढूँढता इंसान को इंसान में

©Sarita Malik Berwal #महर्षिदयानंद
वो अगर चाहता तो जाति को बनाता ढाल तब
 देश था जकड़ा हुआ अंधकार का था जाल जब
था मगर उसने चुना सत्य के प्रकाश को
न मंदिर-मस्जिद को न झूठ के आकाश को

 वो  दिखाता ही गया जो रास्ता वीरान था
कोई न था केवल वहाँ ईश्वर का ही वितान था
उसने मिटाया हिंद से पाखंड के हर ख़्वाब को 
काँटों को था कुचला खिलाकर ज्ञान के गुलाब को

आज भी है ढूँढता भारत उसी विद्वान को
 इंसानियत के देवता एक पुरुष महान को
जिसने सिखाई देश को औरत की मान वंदना
नारी के स्वाभिमान के लिए की सिंह गर्जना

उस दयानंद की ज़रूरत आज फिर वतन को है
वो आए तो समझाए कि देश बढ़ रहा पतन को है
 बस जात-पात धर्म-क्षेत्र मूर्तियों के नाम में
कोई कहाँ अब ढूँढता इंसान को इंसान में

©Sarita Malik Berwal #महर्षिदयानंद