उस,नज़र की भी जाने क्या बात थी गैरों के लिए झुकती,मेरी लिए उठती थी फर्क सोच का कहुँ,या अपने नज़रिए का वो जब जब उठती थी.... ये,,दिल तब तब बैठ जाता था - nickyshukla #nazar