सूर न सुराख, न बचेगी राख। ये काया बनी है मिट्टी की, और मिट्टी में ही खाक।। तूं खुद को पथ दिखाता चल तूं अपना फ़र्ज़ निभाता चल भुजबल तेरा कठोर करके, कदम कदम बढ़ाता चल तूं खुद को पथ दिखाता चल तूं अपना फ़र्ज़ निभाता चल रख भरोसा स्वयं पर तुं अपने लक्ष्य का पैगाम दे असंभव जो लगता तुझको उस घटना को अंजाम दे। तूं कदम कदम मिलाता चल तूं अपना फ़र्ज़ निभाता चल त्याग दे तूं कुसंगतिया जो तुझमें निहित हैं। जो तुझ तक ही सीमित है तूं विसंगति त्याग कर तूं अपना पथ दिखाता चल तूं अपना फ़र्ज़ निभाता चल।। तूं अपना फ़र्ज़ निभाता चल