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जब भी मन तेरा करता है, तुम मिलने को बुलाती हो बतिय

जब भी मन तेरा करता है, तुम मिलने को बुलाती हो
बतियाने का जब मन करता,  मन की सुनाए जाती हो
कभी न सोचा मेरे मन में, भी उठती होंगी चाहें
उन चाहों को पूरा करने,को कभी क्या? अकुलाती हो

©प्रभात शर्मा
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