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पिंजड़े में बंद पंछी भी चहचहाते हैं, भले कैद हो उन

पिंजड़े में बंद पंछी भी चहचहाते हैं,
भले कैद हो उनके पंख बेड़ियों में,
भाव तो उनके मन में भी आ जाते हैं!
वो भी नील गगन की सीमा छूना चाहते हैं,
आंख मूंद ख्वाबों में धरती नापना चाहते हैं,
उसी उम्मीद को जगाकर शायद वो गा लेते हैं।
यह भी तो जरूरी नहीं कि कैद पंछी बस रोते हैं,
'गर पता हो कि पिंजड़े के बाहर सांसे लुट जाते हैं,
तो वो अपनी बची सांसों को सुर में पिरोते जाते हैं।
एक नन्हा पंछी अपने पंखों को पसार उड़ चला,
उसे पता ही नहीं था कि जिस आजादी से वो मचला
वही आजादी छीन लेगी उससे उसके जीने की कला;
आसमान से विषैले बाणों का ऐसा चला सिलसिला
कि कुछ दूर पर ही गिर पड़ा वो पंखों को अपने जला,
जब अन्तःकरण से उसके एक भी स्वर न निकला,
रुकती सांसों ने माना, ऐसी आजादी से क्या हुआ भला,
 न उन्मुक्त गगन का छाव मिला, न अपनों का प्यार मिला,
मिला तो, आजादी की आड़ में घुटती सांसों का साप मिला।
©अनुपम मिश्र #cagedbird #song #sing
पिंजड़े में बंद पंछी भी चहचहाते हैं,
भले कैद हो उनके पंख बेड़ियों में,
भाव तो उनके मन में भी आ जाते हैं!
वो भी नील गगन की सीमा छूना चाहते हैं,
आंख मूंद ख्वाबों में धरती नापना चाहते हैं,
उसी उम्मीद को जगाकर शायद वो गा लेते हैं।
यह भी तो जरूरी नहीं कि कैद पंछी बस रोते हैं,
'गर पता हो कि पिंजड़े के बाहर सांसे लुट जाते हैं,
तो वो अपनी बची सांसों को सुर में पिरोते जाते हैं।
एक नन्हा पंछी अपने पंखों को पसार उड़ चला,
उसे पता ही नहीं था कि जिस आजादी से वो मचला
वही आजादी छीन लेगी उससे उसके जीने की कला;
आसमान से विषैले बाणों का ऐसा चला सिलसिला
कि कुछ दूर पर ही गिर पड़ा वो पंखों को अपने जला,
जब अन्तःकरण से उसके एक भी स्वर न निकला,
रुकती सांसों ने माना, ऐसी आजादी से क्या हुआ भला,
 न उन्मुक्त गगन का छाव मिला, न अपनों का प्यार मिला,
मिला तो, आजादी की आड़ में घुटती सांसों का साप मिला।
©अनुपम मिश्र #cagedbird #song #sing