उर से झंकृत हुई जो एक ध्वनि, पल में समाई मुझमें वो अवनि, बेचैन कर गई मेरी आत्मा को, ऐसी सु - स्पष्ट सी हुई पराध्वनि। सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़े। उर से झंकृत हुई जो एक ध्वनि, पल में समाई मुझमें वो अवनि, बेचैन कर गई मेरी आत्मा को, ऐसी सु - स्पष्ट सी हुई पराध्वनि, न सुर है न ही साज-ओ-सामान, फ़िर भी बढ़ गया यह अभिमान, कुशलतम कौशल,दक्षताओं से, निकले सदैव सुलभ समाधान,