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उर से झंकृत हुई जो एक ध्वनि, पल में समाई मुझमें

उर  से झंकृत हुई जो एक ध्वनि,
पल में समाई मुझमें  वो  अवनि,
बेचैन कर गई  मेरी  आत्मा  को,
ऐसी सु - स्पष्ट सी हुई पराध्वनि।

सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़े। उर  से झंकृत हुई जो एक ध्वनि,
पल में समाई मुझमें  वो  अवनि,
बेचैन कर गई  मेरी  आत्मा  को,
ऐसी सु - स्पष्ट सी हुई पराध्वनि,
न सुर है न ही साज-ओ-सामान,
फ़िर भी बढ़ गया यह  अभिमान,
कुशलतम कौशल,दक्षताओं  से,
निकले  सदैव  सुलभ  समाधान,
उर  से झंकृत हुई जो एक ध्वनि,
पल में समाई मुझमें  वो  अवनि,
बेचैन कर गई  मेरी  आत्मा  को,
ऐसी सु - स्पष्ट सी हुई पराध्वनि।

सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़े। उर  से झंकृत हुई जो एक ध्वनि,
पल में समाई मुझमें  वो  अवनि,
बेचैन कर गई  मेरी  आत्मा  को,
ऐसी सु - स्पष्ट सी हुई पराध्वनि,
न सुर है न ही साज-ओ-सामान,
फ़िर भी बढ़ गया यह  अभिमान,
कुशलतम कौशल,दक्षताओं  से,
निकले  सदैव  सुलभ  समाधान,