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पिंजरे का पंछी पूछ रहा, मुझे क्यों पिंजरे में डाल

पिंजरे का पंछी पूछ रहा, मुझे क्यों पिंजरे में डाल दिया।
तेरी दुनियां में आकर के, क्या मैंने कोई अपराध किया।

ईश्वर ने पंख दिया मुझको,उन्मुक्त गगन में उड़ने को।
छोटी सी एक चोंच दिया, चुनचुन कर दाना खाने को।
फिर मैं दुर्बल जीव ही ठहरा, क्या तेरा नुकसान किया
मुझे क्यों पिंजरे में डाल दिया।
बिछड़ के मुझसे मात पिता,संगी साथी भी रोते होंगे।
मुझसे मिलने की खातिर, वो भी कहीं तड़पते होंगे।
अपनों के संग रहने का ,क्यों सपना मेरा तोड़ दिया।
मुझे क्यों पिंजरे में डाल दिया।

कैद हुए पिंजरे से मैं, उड़ते साथी को देख रहा।
इक दूजे से पूछते होंगे, वो साथी अपना नहीं रहा।
क्यूं दर्द के सागर में तुमने, मुझको इतना डूबा दिया।
मुझे क्यों पिंजरे में डाल दिया।

©नागेंद्र किशोर सिंह
  # पिंजरे का पंछी ।