:-अल्हड़ प्रमी, अंश- 2-: तुम इस बसन्त में पतझड़ सी बिखती क्यों हो। प्रेम भगवान है भगवान से डरती क्यों हो।। जोड़ना नाम है तुमसे तुम्हीं से जोडूंगा। तोड़ना पड़ गया तो फिर पिनाक तोडूंगा।। आज फिर से विदेह के वचन निभाऊँगा। जोड़कर हाथ परशुराम को मनाऊँगा।। जिनके संघर्ष दिनों रात पूजती हो तुम। जिनके सम्मान में दुनियाँ से जूझती हो तुम।। जिनका गुण अंश और वंश जी रही हो तुम। जिनके संकल्प का परिपाक पी रही हो तुम।। उनके आदर्श यूं कमजोर ना पड़ने दोगी। किसी भी हाल में मन से न उतरने दोगी।। इसी आशा में खड़े राम भी तुम्हारे हैं। मुझे पता है तुम्हें "राम" बहुत प्यारे हैं।। "भदावर" :-अल्हड़ प्रमी, अंश- 2-: तुम इस बसन्त में पतझड़ सी बिखती क्यों हो। प्रेम भगवान है भगवान से डरती क्यों हो।। जोड़ना नाम है तुमसे तुम्हीं से जोडूंगा। तोड़ना पड़ गया तो फिर पिनाक तोडूंगा।। आज फिर से विदेह के वचन निभाऊँगा। जोड़कर हाथ परशुराम को मनाऊँगा।।