ग़ज़ल जो तुझ पर है कर्ज तो वो कर्ज अदा कर, जो तेरा है फ़र्ज़ फकत वो फ़र्ज़ अदा कर। तेरी कातिल अदाओं से जो हुआ में घायल, अब मरीज़-ए-दिल को दवा-ए-मर्ज अदा कर। वो मर्ज कुछ और नहीं तुझसे हुआ इश्क़ ही है, इस शब-ए-हिज्र में कुछ हर्जाना-ए-हर्ज अदा कर। शायद मेरे तर्ज़-ए-मोहब्बत से रूठ गई हो तू, गर नापसंद है तो खुदी का यह तर्ज़ अदा कर। मै मुत्मइन था की यह मुकम्मल इश्क़ ही होगा, अब खुदा से खैरियत-ए-'राही' की अर्ज़ अदा कर। #खैरियत #मरीज़_ए_दिल #दवा_ए_मर्ज #शब_ए_हिज्र #हर्जाना_ए_हर्ज = नुकसान की भरपाई #तर्ज़_ए_मोहब्बत #मुत्मइन