#OpenPoetry कलयुग के इस भाग दौड़ में। चल करते हैं त्रेता वाले कुछ काम। मां तुम बन जाओ कौशल्या माई। मैं बन जाता हूं श्री राम। पास यहीं पर लगी है मंडी, मां ला दो ना तीर - कमान। वन में जाकर मैं भी मारूंगा। राक्षस खर दूषण , ताड़का समान। बनकर तुम कैकई माता । दे दो वन जाने का फरमान। रखकर परमपिता का मान। वन को जाऊंगा मैं , श्रीराम समान। मां लेकिन वो त्रेता चिंगारी थी। ये कलयुग है , आग समाज। अब हैं , हर इंसान में एक रावण। कैसे करूं मैं रावण की पहचान। मां तुम बन जाओ कौशल्या माई। मैं बन जाता हूं , श्री राम । #OpenPoetry