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राधा-कृष्ण प्रेम मुझसे अच्छी तो बंशी तेरी, रहती

राधा-कृष्ण प्रेम 

मुझसे अच्छी तो बंशी तेरी, रहती हरपल पास ।

कभी हाँथ से उसको तुम छूते, कभी होती होंठ निकस ।।

कान्हा राजकुमार तू, मैं जोगनियाँ तेरे नाम की ।

मैं पागल सी हो गई, ना रही किसी काम की ।।

राधे-कृष्ण तो नाम हीं, होता सच्चा संग ।

इक आँसू इक आँख है, सुख-दुख में रहते संग ।।

बरसाने राधा ढूँढ रही, कहाँ हो मेरे मीत ।

होरी आयी तुम भी आओ, कहाँ गये मनमीत ।।

निश्छल मन मेरा तड़प रहा, दरस दिखा नन्दलाल ।

मोर मुकुट बंशी सहित, देख रूप हो लूँ निहाल ।।

वन-वन भटकूं, दर-दर भटकूं, भटकूं यमुना तीर ।

दरस दिखा गोपाल मेरे, अंखियन बहते नीर ।।

राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी 

(भाग-4) राधा कृष्ण प्रेम
राधा-कृष्ण प्रेम 

मुझसे अच्छी तो बंशी तेरी, रहती हरपल पास ।

कभी हाँथ से उसको तुम छूते, कभी होती होंठ निकस ।।

कान्हा राजकुमार तू, मैं जोगनियाँ तेरे नाम की ।

मैं पागल सी हो गई, ना रही किसी काम की ।।

राधे-कृष्ण तो नाम हीं, होता सच्चा संग ।

इक आँसू इक आँख है, सुख-दुख में रहते संग ।।

बरसाने राधा ढूँढ रही, कहाँ हो मेरे मीत ।

होरी आयी तुम भी आओ, कहाँ गये मनमीत ।।

निश्छल मन मेरा तड़प रहा, दरस दिखा नन्दलाल ।

मोर मुकुट बंशी सहित, देख रूप हो लूँ निहाल ।।

वन-वन भटकूं, दर-दर भटकूं, भटकूं यमुना तीर ।

दरस दिखा गोपाल मेरे, अंखियन बहते नीर ।।

राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी 

(भाग-4) राधा कृष्ण प्रेम
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