आज़ादी क्या सच में आजाद हैं हम किसके पीछे चलते हैं किसके पीछे बोलते हैं कभी अपने कदमों के निशां खोज पाए हैं हम "दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल" इन पंक्तियों से आगे कभी कुछ सोच पाए हैं हम क्या इतनी आसां थी आजादी बिना लहू बहाए मिली हमें ये छोटी बड़ी सी बात क्यों नहीं समझ आती किसी के किसी का नाम ले तो कोई छूट जाता है क्या इक किरदार दूसरे के बिना सब कुछ निभा पाता है ? "करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है ऐ शहीदे-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है" ऊपर की पंक्तियां अधूरी ही रह जाती ग़र नीचे की पंक्तियों की बहार ज़हन में न आती कोई छोटा बड़ा नहीं यहां हर कोई बराबर का भागीदार है और इसे कायम रखना ही हमारी पहचान है| #आज़ादी क्या सच में आजाद हैं हम किसके पीछे चलते हैं किसके पीछे बोलते हैं कभी अपने कदमों के निशां खोज पाए हैं हम "दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल" इन पंक्तियों से आगे कभी कुछ सोच पाए हैं हम