"हो सकता है .................." ' कि तुम शायद अब हर रात गए चस कदर खाब नही देखा करते होगे ,मगर मैं आज भी नींद के आगोश मे उस ही खाब मे जिया करता हूँ हर पहर , कि तुम शायद अब हर सुबह अपने पलंग के सिरहाने रखी उस तस्वीर को नही निहारा करते होगे ,मगर मै आज भी उस एक तस्वीर के रंगों से अपनी हर सुबह रंग लिया करता हूँ, कि तुम शायद अब भीड़ से डर उस कदर किसी का सहारा नहीं तलाशा करते होगे ,मगर मै आज भी सैकड़ों की.भीड़ मे सिर्फ तुमको हमराह समझ अपनी हर राह चला करता हूँ , कि तुम शायद अब आयने के सामने खड़े होकर उतनी शिद्दत से नहीं निहारा करते होगे खुद को मगर मै आज भी हर आयने मे खुद की परछाई मे देखा करता हूँ तुमको , कि तुम शायद अब उन लम्हों को याद कर उतने सलीके से नही मुसकराया करते होगे मगर मैं आज भी उन लम्हों की गजल बना महफिल मे गुनगुना लिया करता हूँ ' "हो सकता है कि तुम शायद"......................... #होसकताहै